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विमुद्रीकरण के दौर मे देशी जुगाड़ की कमाल


दुनिया के तमाम बड़े-छोटे, नोबल-ग्लोबल अर्थशास्त्री इस बात पर हैरान हैं कि भारत में नोटबंदी के बावजूद वैसी मंदी क्यूं नहीं आई, जैसी कि अमेरिका-यूरोप में हर छठे-चौमासे आती रहती है। ये उनके लिए किसी काली किताब के रहस्य से कम नहीं। मगर बेचारी इंटरनेशनल रेटिंग एजेंसियां क्या जानें कि जिस देश में लोगों का बचपन पुराने कैलेंडरों को काटकर नई किताबों के कवर चढ़ाने में, जवानी चप्पल की टूटी स्टिप को आलपिन से जोड़ने में और बुढ़ापा पुराने पैंट की कमर दो इंच कम करवाकर फिर से उसे रगड़ने में तमाम होता हो, वहां नोट की क्या औकात कि जेब से निकलकर दिखाए!
आदमी या तो सयाना हो सकता है या बचत करने वाला। सयाना उसे कहते हैं जो गुमटी पर चाय तब तक सुड़कता रहे, जब तक कि उसका साथी उससे पहले गिलास खाली करके पेमेंट न कर दे और बचत करने वाला वह है, जो हलवाई की भट्टी से उड़ती देसी घी की लाजवाब खुशबू को भी नजरअंदाज कर दीवार पर चिपके खोई जवानी पुन: प्राप्त करें वाले इश्तेहार को घूरने लग जाए। जो सयाना होता है, वह रेस्तरां में वेटर को बिल लाते देख हाथ धोने चला जाता है और बचे-खुचे बाल सेट करने के बहाने वॉश बेसिन के आईने से तब तक ताड़ता रहता है, जब तक कि अगला अपना पर्स न निकाल ले। छुट्टियों में जब हफ्ते भर के लिए अपने शहर जाते हैं तो घर के बिजली के सारे स्विच बंद करने के बाद भी मेन कनेक्शन बंद करके ही दहलीज छोड़ते हैं। जब टूथपेस्ट में से पेस्ट निकलना बंद हो जाता है तो उसके पैरों पर दबाव बनाते हुए धीरे-धीरे मुंह तक पहुंचकर पेस्ट निकालते हैं, फिर चटनी पीसने के पत्थर या ब्रश के पिछले हिस्से की मदद से दबा-दबाकर पेस्ट निकालते हैं। जब पेस्ट का प्लास्टिक नगर निगम की पाइप लाइन की तरह जर्जर होकर बीच के इलाकों से पेस्ट के कतरे सप्लाय करने लगता है तो बड़े इत्मिनान से वे कतरे उठा-उठाकर ब्रश पर लगाते हैं। भले ही इस चक्कर में अंगुलियां लहूलुहान क्यों न हो जाएं! क्या मंजन, क्या साबुन, क्या कपड़े और क्या कार! बाजार लाख चीख-चीखकर कहता रहे कि पुराना दो, नया लो, पर वे तो यही कहते हैं कि भले शोरूम से कार हमारे यहां चार पहियों पर आई थी, जाएगी तो चार लोगों द्वारा घसीटकर सीधे कबाड़ी के यहां ही। बताइए, ऐसे लोगों के लिए नोटबंदी क्या और आर्थिक मंदी क्या?
                                                                                 सौजन्य से -: दैनिक जागरण 
विमुद्रीकरण के दौर मे देशी जुगाड़ की कमाल Reviewed by Unknown on 4:19:00 AM Rating: 5

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